अनुप्रिया के हाथ से फिसलते-फिसलते बच गई
### चुनाव 2024
#### अनुप्रिया के हाथ से फिसलते-फिसलते बच गई मीरजापुर
अपना दल (एस) की ताकत आधी रह गई है। राबर्ट्सगंज सीट उसके हाथ से फिसल गई और मीरजापुर सीट फिसलते-फिसलते रह गई। पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से करीब सवा दो लाख वोटों से जीती हैं। अब 2024 के चुनाव में वह महज 37,810 वोटों से ही जीत सकीं। ऐसे में अब भाजपा के इस सहयोगी दल में हलचल मची हुई है।
#### मोदी लहर का मिला था फायदा
वर्ष 2012 में अनुप्रिया पटेल वाराणसी की रोहनियां से विधायक बनीं। उन्होंने संसद पहुंचने के लिए 2014 में भाजपा के साथ गठबंधन किया। मोदी लहर में वह 2014 में मीरजापुर से चुनाव लड़ीं और बसपा की समुंद्रा बिंद को 2.19 लाख वोट से हराया। वहीं, इस पार्टी ने कोटे में मिली दूसरी प्रतापगढ़ सीट पर भी परचम लहरा दिया। यहां संगम लाल गुप्ता चुनाव जीते।
फिर 2019 के चुनाव में पार्टी को मीरजापुर के साथ राबर्ट्सगंज सीट दी गई। प्रतापगढ़ में संगम लाल गुप्ता को भाजपा ने अपने टिकट पर लड़ाया। मीरजापुर से अनुप्रिया पटेल दोबारा 2.39 लाख वोटों से जीतीं और सपा के राम चरित्र निषाद को हराया। अबकी चुनाव में अनुप्रिया कड़े मुकाबले में किसी तरह जीत पाईं। उन्हें 4.71 लाख वोट मिले तो सपा के रमेश चंद बिंद को 4.33 लाख वोट मिले।
2019 में राबर्ट्सगंज सीट पर इस पार्टी ने पकौड़ी लाल कोल को टिकट दिया और वह 54 हजार वोट से चुनाव जीते थे। इस लोकसभा चुनाव में ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने के कारण इनका टिकट काट दिया गया। मगर टिकट इन्हीं की विधायक बहू रिंकी कोल को दे दिया गया। नतीजा यह हुआ कि मतदाताओं की नाराजगी के कारण रिंकी कोल सपा के छोटे लाल से 1.29 लाख वोट से चुनाव हार गईं।
प्रदेश की विधानसभा में इस पार्टी के 13 विधायक हैं और भाजपा व सपा के बाद यह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। कुर्मी वोट भी इस बार सपा की ओर काफी ज्यादा गया है। उनकी बहन पल्लवी पटेल सपा विधायक हैं। प्रदर्शन सुधारने व कुर्मी वोट बैंक को सहेजने की उनके सामने बड़ी चुनौती है। पार्टी का कारणों की समीक्षा के लिए जल्द बैठक होगी।
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