1927 में आज: अशफ़ाक़ुल्ला खान ने फांसी के फंदे को चूमा मुस्कान के साथ
1927 में आज: अशफ़ाक़ुल्ला खान ने फांसी के फंदे को चूमा मुस्कान के साथ
फ़ैज़ाबाद जेल, 19 दिसंबर 1927
देशभक्ति और बलिदान की अद्भुत मिसाल पेश करते हुए, अशफ़ाक़ुल्ला खान ने आज ही के दिन फांसी के फंदे को चूमते हुए देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ठंडी सुबह में फ़ैज़ाबाद जेल में जब ब्रिटिश अधिकारियों ने सारी तैयारियाँ पूरी कर लीं, तो उन्होंने आदेश दिया, "उसे यहाँ लाओ।"
अशफ़ाक़, जो पहले से इस बुलावे का इंतजार कर रहे थे, कुरान पढ़ने के बाद खड़े हुए और बड़ी शांति के साथ कहा, "चलो, अब मैं तैयार हूँ।" उनकी दृढ़ता और आत्मविश्वास ने वहां मौजूद लोगों को हिला कर रख दिया।
वीर की अंतिम बातें
अशफ़ाक़ ने फांसी से पहले अपने भाइयों को लिखे पत्र में कहा,
"ब्रेव (साहसी) केवल एक बार मरता है, कायर बार-बार। मैंने हमेशा अपने वतन से प्यार किया है और इसके लिए जान देना मेरा सौभाग्य है।"
कुरान को गले लगाकर उन्होंने कलमा पढ़ा और कहा,
"मेरे हाथ निर्दोष हैं। मुझ पर लगाए गए आरोप झूठे हैं। अल्लाह मुझे न्याय देगा।"
बलिदान का प्रतीक
अशफ़ाक़ुल्ला खान के शब्द "ऐ मेरे पाक खुदा, हिंदुस्तान की सरज़मीं पर आज़ादी का सूरज जल्द ही निकले," उनकी देशभक्ति का प्रमाण हैं। फांसी का फंदा चूमते समय उन्होंने अपना जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया। उनकी यह वीरगाथा आज भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को अमर कर देती है।
अशफ़ाक़ुल्ला खान का बलिदान हमें हमेशा याद दिलाता रहेगा कि देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान ही सच्ची देशभक्ति है।
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