जब रुपया नहीं था, तब क्या था? जानिए ‘फूटी कौड़ी’ से ‘धेला’ तक भारतीय मुद्रा का रोचक इतिहास
जब रुपया नहीं था, तब क्या था? जानिए ‘फूटी कौड़ी’ से ‘धेला’ तक भारतीय मुद्रा का रोचक इतिहास
भारतीय मुद्रा प्रणाली का इतिहास न केवल प्राचीन है, बल्कि बेहद रोचक और विविधतापूर्ण भी रहा है। आज हम रुपये और पैसों की बात करते हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जब 'फूटी कौड़ी', 'दमड़ी', 'धेला', 'अठन्नी' जैसी छोटी-छोटी इकाइयाँ हमारे व्यापार और लेन-देन का आधार हुआ करती थीं। ये शब्द आज कहावतों में जरूर रह गए हैं, लेकिन कभी इनका बड़ा आर्थिक महत्व हुआ करता था।
फूटी कौड़ी का मतलब क्या था?
‘फूटी कौड़ी’ एक बहुत पुरानी मुद्रा इकाई थी। यह समुद्र से मिलने वाली छोटी सी खोल होती थी, जिसे प्राचीन समय में मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। अगर कोई कहे कि “उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है”, तो इसका अर्थ है कि उसके पास एकदम भी पैसा नहीं है।
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कैसे बनती थी मुद्रा की इकाइयाँ?
प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली में मुद्रा इस तरह से विकसित होती थी:
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कहावतों में जीवित हैं ये शब्द
आज भी हम “फूटी कौड़ी न होना”, “धेले का भी फायदा नहीं हुआ”, या “दमड़ी भर की औकात नहीं” जैसी कहावतों का प्रयोग करते हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ये सब वास्तव में प्राचीन भारतीय मुद्रा इकाइयों से जुड़ी हैं। ये मुहावरे उस समय की आर्थिक व्यवस्था और सामाजिक स्थितियों का प्रतीक हैं।
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कैसे बदली मुद्रा की तस्वीर?
समय के साथ जब धातु मुद्रा आई, तब कौड़ी और दमड़ी जैसी प्राकृतिक चीजों की जगह सिक्कों ने ली। फिर आया रुपया, जो धीरे-धीरे पूरे देश की मान्यता प्राप्त मुद्रा बन गया। और आज हम डिजिटल लेनदेन की ओर बढ़ चुके हैं।
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निष्कर्ष
आज हम भले ही डिजिटल करेंसी और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की दुनिया में जी रहे हों, लेकिन ‘फूटी कौड़ी’ से शुरू हुआ हमारा मुद्रा इतिहास यह बताता है कि भारतीय आर्थिक प्रणाली कितनी प्राचीन, समृद्ध और व्यवस्थित रही है। इस इतिहास को जानना हमें न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि छोटी से छोटी चीज का भी कभी कितना महत्व हुआ करता था।
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